बुधवार, 25 मई 2011

gangatok .....क्या से क्या हो गया ..........

बचपन में पिताजी कहा करते थे कि बच्चा बड़ा हो कर उन जगहों को ढूंढता है जहां उसका
बचपन बीता होता है .........और जब वो जगहें उसे नहीं मिलती तो रोता है उस वक़्त मुझे लगा था कि क्या फालतू की बात करता है मेरा बाप भी.....जी हाँ बच्चों को यही लगता है कि उनका बाप फालतू की बात करता है ....पहले मुझे लगता था अब मेरे बच्चों को लगता है ...........मेरे पिता जी फ़ौज में थे इसलिए मेरा बचपन उनकी नौकरी कि वजह से पूरे हिन्दुस्तान में बीता ..........हर 2 या 3 साल बाद नई पोस्टिंग ....एक नया शहर ....नया स्कूल, नई कालोनी ......नए दोस्त ....नए सहपाठी......नए teachers ........बड़ा मजेदार था वो सब ............पूरा हिंदुस्तान समा जाता एक क्लास में ......कोई कहीं का ...कोई कहीं का.......north , south ....north east ......andamaans.......हर जगह के बच्चे होते थे क्लास में.......हम एक ऐसी नदी में बह रहे थे जो निरंतर प्रवाहमान थी.........शादी के बाद मैंने अपनी पत्नी मोनिका से वो सभी जगहें घुमाने का वादा किया जहाँ मेरा बचपन बीता था .........तो सबसे पहले तय हुआ कि gangtok चला जाये ..............gangtok सिक्किम कि राजधानी है और लगभग 5000 हज़ार कि ऊँचाई पर बसा हुआ एक बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है। यहाँ हम बचपन में 1978 में रहा करते थे
तो साहब ...चल पड़े हम दोनों पति पत्नी.....बैग कंधे पर लाद के.........सिलीगुड़ी तक की यात्रा एक दम सामान्य थी......कोई रोमांच नहीं.......सिलीगुड़ी से हमने एक शेयर taxi ले ली ......kalimpong के लिए .......गाडी अभी चली ही थी कि एक सुनसान सड़क पर जा कर ख़राब हो गयी .......खराब भी ऐसी कि ठीक होने की कोई गुंजाइश नहीं.......अब बुरे फंसे.... इधर के ना उधर के ........पर हम दोनों तुरंत adventure tourism कि मुद्रा में गए.....पिट्ठू कंधे पर बाँधा और चल पड़े पैदल ही ............करीब 2 किलोमीटर चलने के बाद एक ट्रक आता दिखा.....हमने हाथ दिया .......वह रुक गया ....हम हो गए सवार ...पीछे.....3....4 किलोमीटर बाद एक चौराहे पर उसने उतार दिया........वहां से दूसरा ट्रक लिया ............उसने मेन रोड पर उतार दिया . यहाँ से हमें kalimpong के लिए बस मिल जाती ...... पर अब तक हमें ट्रक की यात्रा का चस्का लग चुका था .....ट्रक के हुड पे बैठ के ....क्या हवा लगती है ....क्या नज़ारे आते हैं ........वो भी मुफ्त में ......वाह मज़ा गया .... अब कौन बैठता है बस में ......वहां से तीसरे ट्रक में लिफ्ट ली.......ड्राईवर ने कहा अन्दर केबिन में बैठ जाओ ....पर हमने कहा ...नहीं ऊपर हुड पे बैठेंगे......अगले 30...35 किलो मीटर बड़े मज़े से .........क्या हवा लग रही थी फर्र फर्र ...........अब यहाँ रास्ता दो भागों में बंट गया था ...एक गंगटोक और एक गुवाहाटी जाता था........यहाँ हमें फिर change करना थाअब होने लगा अगले ट्रक का इंतज़ार..........एक तो उस रोड पर ट्रक बहुत कम थे और जो आए वो रुके नहींपर हम दोनों ढीठ भी जमे रहे........धीरे धीरे एक घंटा बीत गया ....पर ट्रक में लिफ्ट नहीं मिलीआखिर धैर्य की भी एक सीमा होती है......सो अंत में हमारा भी धैर्य चुक गया .......सोचा चलो बस ही ले लेते हैंबस आई तो ठसा ठस भरी हुईमैडम जी तो किसी तरह अन्दर घुस गयी और हम पीछे लटक लिएबस चली तो मैडम जी ने चीख पुकार मचाई ........हाय ..... मेरा तो पति छूट गया........एक ही पति था ...वोह भी छूट गया......पूरी बस में सहानुभूति कि लहर दौड़ गयी.......अरे घबराइए नहीं ...वोह पीछे छत पर चढ़ गए हैं ........अब श्रीमती जी और जोर से चिंघाड़ने लगीं ...... हाय हाय ....... रोको रोको......... मेरे पति को लाओ ......अंत में हार कर ड्राईवर ने बस रोक दी और मोहतरमा भी ऊपर ही गयीं ...........वाह साहब क्या नज़ारा था..........यह बोली .....अच्छा ............तुम यहाँ नज़ारे ले रहो हो और मैं वहां अन्दर....तुम AC में और मैं जनरल में ....कभी नहीं......हम दोनों बस कि छत पे लेट गए ........क्या दृश्य था........सड़क के बगल में तिस्ता नदी .....अठखेलियाँ करती ...बल खाती ........साफ़...शुद्ध ..... नीला पानी........सड़क के दूसरी तरफ घना जंगल ...सामने कंचनजंघा कि चोटी ......ऐसी जैसे चांदी का पहाड़ हो .......नीले आकाश में रुई जैसे बादल.........पिछली रात शायद बारिश हुई थी ........धुले पुंछे पेड़ .....नहाये धोए से.....प्रकृति का ऐसा खूबसूरत नज़ारा ...वोह भी बस छत के ऊपर से .......वाह साहब मज़ा गया .........
दो दिन तक kalimpong में रुकने के बाद हम gangtok के लिए चल पड़े...........gangtok को ले कर मैं बड़ा उत्साहित था..........अपनी पत्नी को बता रहा था ........गंगटोक ऐसा है ...वैसा ...है ....बहुत सुन्दर है ........बचपन के दृश्य आँखों के सामने तैर रहे थे............जैसे जैसे शहर नज़दीक रहा था मेरा उत्साह बढ़ता जा रहा था ..........रानी पुल गया ....बस यहाँ से 5 किलोमीटर और ......यहाँ तक तो हम दौड़ लगाने आया करते थे ......पर यह क्या ....रानी पुल का बाज़ार तो ख़तम ही नहीं हो रहा था .........वह सड़क जहाँ दोनों तरफ धान के खेत होते थे , और बांस का जंगल ...अब कहीं नहीं थी ........अब तो चारोँ तरफ सिर्फ concrete का जंगल था ....बदसूरत ...गन्दा ...घिनौना........जिस सुनसान सड़क पर हम दौड़ लगाया करते थे ....वह उनींदी सी ...अलसाई सी सड़क .......अब वहां हमारी बस एक traffic jam में फंस कर खड़ी थी.......मेरा सारा उत्साह ठंडा पड़ गया था ........मेरा बचपन उस cocrete के जंगल में कहीं खो गया था ..... हमेशा के लिए .......और मैं उसे ढूंढ रहा था ..... वह वहां कहीं नहीं था .......मेरी पत्नी ने मेरे मनोभावों को पढ़ लिया था ..........उसने मेरा हाथ थाम लिया........शायद हौसला देने के लिए.......शहर पहुँच कर होटल में कमरा लिया .....शहर में बहुत भीड़ भाड़ थी ...traffic का शोर ...गन्दगी ......शाम को हम पैदल ही देवराली गए ...वहां जहाँ हमारा स्कूल होता था....वह बिल्डिंग अब भी वहीँ खड़ी थी .......पर मैं उसे पहचान नहीं सका क्योंकि उसके इर्द गिर्द जो बड़ा सा मैदान होता था वो अब वहां नहीं था......वहां और बहुत सी इमारतें बन चुकी थीं वहां मेरा दम घुटने लगा था हम लोग तुरंत लौट आए.......देवराली बाज़ार में मैंने वह दुकान ढूँढने कि कोशिश की जहाँ से हम कॉमिक्स किराए पर लिया करते थे...और मेरी छोटी बहन खट्टी मीठी इमली खरीदा करती थी.......अब वह दुकान वहां नहीं थी .........
अगले दिन हमें वहां जाना था जहाँ हम रहा करते थे .......down TCP के पास ...554 asc battalion के FAMILY QUARTERS में ......मुझमें ज़रा भी उत्साह नहीं था ..... वहां जाना बस एक रस्म अदायगी भर थी ......इतनी दूर कर भी जाते तो एक मलाल रह जाता ........पहले वह शहर से दूर एक सुनसान सी जगह होती थी पर अब बढ़ते शहर ने उसे लील लिया था पहले हम वहां या तो पैदल आया करते थे या फौजी गाड़ियों में ...पर अब उस सड़क पर ऑटो चलने लगे थे ......हम दोनों down TCP उतरे और पैदल ही चल पड़े उस तरफ जहाँ हमारा घर होता था .........पर यह क्या .....मेरे आश्चर्य का ठिकाना रहा ........ये जगह तो बिलकुल भी नहीं बदली थी ....... हू हू वैसी ही ........जैसी हम छोड़ कर गए थे 1980 में वो barraks , वो nursery स्कूल , वो volley ball का मैदान , वो sentry की post , वो वेट कैंटीन ....जहाँ हम गरम गरम समोसे और रसगुल्ले खाया करते थे ........सब कुछ वैसा ही था...एक ईंट तक नहीं बदली थी .........मुझे पता ही नहीं चला कब मेरी चाल तेज़ हो गयी.............और मेरी पत्नी पीछे छूट गयी थी ......मेरे अन्दर का वो बच्चा उछल कर बाहर गया था ........हम उस घर तक गए जहाँ हम रहा करते थे ........वही घर ....वही रंग रोगन ........उस के आगे लगा वो पेड़ और बड़ा हो गया था .....उस पर ढेर सारे फूल खिले हुए थे ........सामने उस बड़ी सी पहाड़ी पर वो घना जंगल ....अब भी उतना ही घना था ........और भी खूबसूरत...........और रूमटेक का वो बौद्ध मठ ....अब भी वहीँ खड़ा था ........बचपन के वह सारे दृश्य आँखों के सामने तैर रहे थे .......हम अपने घर के ऊपर वाली सड़क पर देर तक टहलते रहे.........खूब बातें की ........पॉवर हाउस की दीवार पर बैठ कर मैंने मोनिका को वो बास्केट बाल का मैदान दिखाया जहाँ हम खेलते थे .......उसके ऊपर वो मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा ....तीनों एक साथ खड़े थे ......उन में आपस में कोई झगड़ा नहीं था .....हम उस मंदिर में गए जहाँ पिता जी religious teacher हुआ करते थे......जहाँ हर sunday ....मंदिर कार्यक्रम के बाद प्रसाद में हलुआ मिलता था ........कृष्ण जी की वो मूर्ति ....वही थी....ज़रूर उसने मुझे पहचान लिया होगा........भूख लग आयी थी....हम टहलते हुए वेट कैंटीन तक आए .......ठेकेदार बदल गया था पर कैंटीन वही थी ......उस दिन वहां ब्रेड पकोड़े बन रहे थे ........आज कल मैं चाय में बहुत कम मीठा पीता हूँ ...पर उस दिन उस कैंटीन में ब्रेड पकोड़ों के साथ वो खूब मीठी चाय पी कर बहुत मज़ा आया .............
आज दस साल बाद भी गंगटोक की वो यात्रा मुझे अच्छी तरह याद है .......पिछले कुछ सालों से हम लोग जालंधर में रहते हैं .......अत्यंत विकसित शहर है........6 महीने बाद किसी सड़क पर जाओ तो पहचान में नहीं आती ......हर साल ....जब मौका मिलता है तो हम अपने गाँव जाते हैं....... वो गाँव जहाँ हम शादी के बाद 15 साल रहे ........... रास्ते में मेरी पत्नी कुढती है ......बताओ..... कितना मनहूस इलाका है .....पिछले बीस साल में बिलकुल भी नहीं बदला.....कोई विकास नहीं हुआ ........एक ईंट तक नई नहीं जुडी ......तो मैं उसे gangtok की वो यात्रा याद दिलाता हूँ ........और मैं उस से कहता हूँ की ईश्वर करे की ये जगह बिलकुल भी बदले ........क्योंकि यहाँ मेरे बच्चों का बचपन बीता है .......मैं चाहता हूँ की वो भी यहाँ कर उतनी ही ख़ुशी महसूस करें जो मैंने वहां .......गंगटोक में ........अपने उस पुराने घर जा कर की थी ......
और अब मैं अपने बच्चों को बताता हूँ की .....आदमी बड़ा हो कर उन जगहों को ढूंढता है जहाँ उसका बचपन बीता है ......और जब नहीं मिलती है तो रोता है ...............

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