बुधवार, 1 जून 2011

मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तेरी हर चाप (कदमों) से जलते है ख्यालो में चिराग 
जब भी तू आए जगाता हुआ जादू आए 
तुझको छू लूँ तो ए जाने तमन्ना मुझको 
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबु आए 
तुझपे हो जाऊंगा कुर्बान तुझे चाहूँगा 
मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको 
मेरी ये उम्र मोहबत के लिए थोड़ी है
एक जरा सा गमें दोराहा का हक़ है जिसको
मैने वो सासं भी तेरे लिए रख छोड़ी है 
प्यार का बनके निगहबान  तुझे चाहूँगा
मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

कभी आओ फुर्सत से तो मेरी इक ग़ज़ल से मिलना




जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में  खोये होते है
दरवाज़े पर आहट होती है हम दौड़ कर दरवाज़ा खोलते हैं 
तुम्हे  आया पा कर मायूस हो जाते हैं ,  
दिल  को समझाते हैं, तेरे आने की उम्मीद पे उसे बहलाते हैं 
जब हम तनहा होते हैं  और तेरी यादों में खोये होते हैं  

तेरे साथ गुज़ारे हुए लम्हे हमें सुकून देते हैं
जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में खोये होते है

वक़्त का कुछ भी होश नही होता है
जाने कब शाम होती हैं
जाने कब रात गुज़र जाती है
ये रुत भी जानती है, और चाँद भी देखा करता है
की हम अब  अपने साये से भी हम घबराते हैं 
शब् के सन्नाटे में अपनी धडकनों की सदा आती हैं
नीद से बोझल आँखें थकन से चूर हो सोने के लिए उकसाती हैं
हम तेरी यादों को दामन में समेटे सो जाते हैं
सुबह जब नींद खुलती हैं तो फिर वही बात होती है
जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में खोये होते है

बरसो रे मेघा बरसो रे


बरसो रे मेघा बरसो रे


आज पहली बारिश हुई लगता है बरसात का मौसम शुरू हो गया है ,पानी की बूंदों ने आज कलकता को सराबोर कर दिया बारिश किसी मौसम की हो मुझे इश्क है बारिश से वो पानी की बूंदों को हाथ में समेटना, झमाझम बारिश में भींगना काफी पसंद है मुझे ये मौसम काफी रोमांटिक होता है ठंडी सिली हवा के झोंके जब तन को छु जाते है तो मन गुदगुदी से भर उठता है 



पेश है एक कविता बारिश पे  

भींग रे मन  तू  झमाझम बारिश में
कर ले थोड़ा प्यार झमाझम बारिश में
भीगें सारी रात झमाझम बारिश में
बारिश में बारिश में यारां बारिश में
कर ले दिलकी बात झमाझम बारिश में

तू मेरा नाम न पुछा कर


तू मेरा नाम पुछा कर



तू मेरा नाम पुछा कर
मैं तेरी ज़ात का हिस्सा हूँ
मैं तेरी सोच में शामिल हूँ
मैं तेरी नींद में शामिल हूँ
मैं तेरे ख्वाब का किस्सा हूँ
मैं तेरी सांसों की हर साँस हूँ
तू मंज़र है मैं पसमंज़र हूँ
मैं केवल तेरे दिल का ज़ज्बा हूँ






!! २१वीं सदी की बेटी !!






जवानी की दहलीज पर
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
पर उन्हें क्या पता
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।

यादों के पल

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