सोमवार, 15 अगस्त 2011

बालमन को रौंदते टीवी न्यूज चैनल

सुबह सो कर उठा तो बच्चे घर में ही पाए गए, जबकि उन्हें स्कूल में होना चाहिए था। पूछा स्कूल यों नहीं गए तो एक ने जवाब दिया कि स्कूल जाकर या करना है। यह दुनिया तो वैसे भी कुछ ही दिन की मेहमान है। उसके जवाब से मैं हैरत में था। मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। खुद को संयत करते हुए पूछा कि तू ऐसी बकवास यों कर रहा है?

मैं नहीं डैडी,मेरे स्कूल के सभी लड़के कह रहे हैं कि पढ़-लिखकर या करना?दुनिया तो चार साल चार माह १५ दिन बाद तबाह हो जाएगी, बरबाद हो जाएगी। ऐसे में पढ़ने का या फायदा? जिंदगी के जो चार साल बचे हैं उसमें मौज-मस्ती यों न की जाए। मेरा यह बेटा अभी पंद्रह साल का है और नौवीं कक्षा में पढ़ता है। उसकी बातें सुनकर एक पल को तो मेरे शरीर में खून दोड़ना ही बंद हो गया। मुझे लगा कि यह या बकवास किए जा रहा है। अगले ही पल मुझे बहुत तेज गुस्सा आया और मन में आया कि मैं इसकी बेवकूफी के लिए इसकी पिटाई कर दूँ। लेकिन फिर सोचा कि नहीं, इसकी बात को धैर्य से सुनना चाहिए। यह तय करने के बाद मैं शांत हो गया और उससे प्यार से पूछा कि आप और आपके स्कूल के लड़कों को यह बात किसने बताई? उसने बिना हिचक एक न्यूज चैनल का नाम लिया। अब मेरे लिए और चौकने की बारी थी। न्यूज चैनल का ऐसा प्रभाव नौवीं कक्षा के छात्रों पर इस तरह से भी पड़ सकता है मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। यह तो पता था कि आजकल न्यूज चैनलों में ऐसी-ऐसी खबरें दिखाई जा रही हैं जिनको खबर कहा ही नहीं जा सकता। लेकिन ऐसी भी खबरें दिखाई जा रही हैं जिससे बालमन हताशा और निराशा के गर्त में चला जा रहा है।

इसे या कहेंगे? क्या  यही पत्रकारिता है?क्या यही पत्रकारिता के सिद्धांत और नैतिक मूल्य हैं? क्या ऐसे ही देश निर्माण किया जाता है? क्या यही पत्रकारिता के सामाजिक सरोकार हैं?ये सभी सवाल मेरे दिमाग पर किसी हथोड़े की तरह प्रहार करने लगे। मुझे नहीं सूझ रहा था कि मैं बच्चे से आगे या कहूँ । कुछ पल रुकने के बाद मैंने कहा कि जिस न्यूज चैनल की बात आप कर रहे हैं उसे कभी नहीं देखना चाहिए। वह झूठी और ऊल-जुलूल खबरें दिखाता रहता है। उसकी खबरों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

बेटे को यह प्रवचन देकर मैं टीवी खोल कर बैठ गया। न्यूज चैनल के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ़ गई थी। इस कारण उसी को देखने लगा। इत्तफाक से उस समय उस न्यूज चैनल पर वही खबर आ रही थी, जिसका जिक्र बेटे ने किया था। न्यूज चैनल किसी स्वामी के हवाले से दावा कर रहा था कि ४ साल ४ माह १५ दिन बाद एक प्रलय आएगा और पूरी दुनिया को तबाह कर जाएगा। तब इस धरती पर कुछ भी नहीं बचेगा। इन बातों के साथ वह विध्वंसक दृश्य भी दिखा रहा था। जिसका मतलब था कि जो वह कह रहा है उसका दृश्य इसी तरह का हो सकता है। न्यूज चैनल दावा कर रहा था कि २१ दिसंबर २०१२ को कलियुग खत्म हो जाएगा। इसी के बाद यह प्रलय आएगी। एक ऐसी सुनामी आएगी जिससे कोई भी नहीं बच पाएगा। चैनल का यह भी दावा था कि इस स्वामी की अभी तक की सभी भविष्यवाणियां सच हुई हैं। यही नहीं कुछ हिंदू धर्म गुरुओं  ने भी ऐसी ही भविष्यवाणी की है। न्यूज चैनल यह भी दावा कर रहा था कि वैज्ञानिक भी इस आशंका में हैं और वह इस समस्या से निपटने का उपाय खोज रहे हैं। इन सब चीजों को वह एक हारर फिल्म की तरह दिखा रहा था। इसी बीच न्यूज चैनल को चाहिए था ब्रेक तो उसने दावा किया कि ब्रेक के बाद वह इस संदर्भ में कुछ वैज्ञानिकों की राय भी दिखाएगा। इस कारण मैं उस न्यूज चैनल को देखता रहा। सोचा देखते हैं वैज्ञानिक या कहते हैं।

ब्रेक खत्म हुआ। न्यूज चैनल फिर वहीं कहानी दोहराने लगा। उसके बाद दूसरी खबर दिखाने का वादा करते हुए बे्रक पर चला गया। वैज्ञानिकों की राय को दिखाने का जो दावा उसने किया था उसे ऐसे पी गया जैसे प्यासा पानी को पी जाता है। मैंने बेटे से कहा कि देखा इसने दावा करके वैज्ञानिकों की राय को नहीं दिखाया। इसका मतलब है कि इसने जो खबर दिखाई है वह केवल सनसनी फैलाने के लिए। उसकी खबर पर विश्वास नहीं किया जा सकता। संतोष की बात यह थी मेरी बात से मेरा बेटा सहमत हो गया। लेकिन उन बच्चों को कौन समझाएगा जिनके अभिभावक खुद ऐसी खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं।

सवाल उठता है कि या टीआरपी के लिए किसी न्यूज चैनल को इस हद तक चला जाना चाहिए कि वह अपने सामाजिक सरोकारों को ही भूल जाए? खबरों का एक मूल्य होता है जो मानवीयता, नैतिकता, सामाजिकता,संस्कृति और देश के प्रति जवाबदेह होता है। जब इसका उल्लघंन किया जाता है तो उसके खतरनाक प्रभाव समाज, संस्कृति और देश पर पड़ता है। आजकल कुछ न्यूज चैनल शायद इस बात को भूल गए हैं। उनके लिए टीआरपी इतनी अहम हो गई है कि वह कुछ भी दिखाए जा रहे हैं,बिना यह सोचे-समझे कि इसका समाज पर या प्रभाव पड़ेगा। शायद यही वजह थी कि पिछले दिनों केंद्र सरकार ने न्यूज चैनलों पर शिकंजा कसने का प्रयास किया था। हालांकि इसका समर्थन नहीं किया जा सकता कि सरकार खबरों को सेंसर करे, लेकिन यदि न्यूज चैनल ऐसे ही चलते रहे तो सरकार के लिए मजबूरी हो जाएगी कि वह इन्हें पत्रकारिता सिखाए। इसके लिए उसे जनसमर्थन भी मिल जाएगा। यदि ऐसी स्थिति आती है तो इसके लिए ऐसे न्यूज चैनल ही जिम्मेदार होंगे जो विवेकहीन होकर सनसनी फैला रहे हैं।

खोखले होते हमारे रिश्ते

रोजाना समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही है कि अपने ने ही अपनों को मार डाला। कभी जमीन के लिए तो कभी पैसे के लिए। कुछ दिन पहले कि घटना कि एक लड़के के अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम भेज दिया,क्यों वह बीमार रहते थे और उसके पास अपने बुजुर्ग माता पिता के लिए समय नहीं थी। ऐसी हवा चल रही है जिससे लगता है हमारे रिश्ते खोखले होते जा रहे है,स्वार्थ का दीमक हमारे अपनेपन के अहसास को खत्म करता जा रहा है। मां-बाप बच्चों तो पालते है,लेकिन बच्चे क्या कर रहे है। उनको वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा दिया, क्योंकि उनको वह बोझ लगने लगते है। पिछले दिनों एक वृद्ध आश्रम जाने का मौका मिला तो वहां के बुजुर्गों का दर्द सुन कर आंखो में नमी के साथ-साथ शर्मिंदगी थी कि हम अपनों को बोझ मानने लगे है। उन बुजुर्गो को जिन्होंने हमारी खुशी के लिए अपना जीवन का हर वो पल निछावर कर दिया, जिससे वह जीवन भर की खुशियां हासिल कर सकते थे। क्या आज हम आधुनिकता की दौ़ड़ में इतना व्यस्त हो चुके है कि हमारे अपने-अपनों के साथ के लिए तरस रहे है। लेकिन हम शायद यह भूल रहे है कि हम भी कभी उनकी उम्र में पहुंचेंगे, तब क्या अपनों की कमी नहीं महसूस होगी। स्वार्थ इतना हम पर हावी हो रहा है कि खुद के सिवा कुछ भी नहीं सोच पा रहे। खुद के लिए खुशियां तो ढूंढते है,लेकिन खुद के रिश्तों को कही दूर छोड़ते जा रहे है। विदेशी सांस्कृति का असर हम पर हो रहा है,वहां की तेज रफ्तार और व्यस्त जीवन का कलचर हमारे मनों पर ज्यादा छाप छोड़ रहा है। किसी दूसरे देश की संस्कृति को अपनाने में बुराई नहीं,लेकिन अपनी संस्कृति को भूलना गलत है। 

एक नजम

जिनको दुनिया की निग़ाहों से छुपाये रखा
जिनको एक उम्र कलेजे से लगाये रखा
दीन जिनको जिन्हें ईमान बनाये रखा
तुने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे
साल दा साल मेरे नाम बराबर लिखे
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे
तेरी खुशबू से भरे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे प्यार में डूबे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ

बुधवार, 1 जून 2011

मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तेरी हर चाप (कदमों) से जलते है ख्यालो में चिराग 
जब भी तू आए जगाता हुआ जादू आए 
तुझको छू लूँ तो ए जाने तमन्ना मुझको 
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबु आए 
तुझपे हो जाऊंगा कुर्बान तुझे चाहूँगा 
मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको 
मेरी ये उम्र मोहबत के लिए थोड़ी है
एक जरा सा गमें दोराहा का हक़ है जिसको
मैने वो सासं भी तेरे लिए रख छोड़ी है 
प्यार का बनके निगहबान  तुझे चाहूँगा
मै तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा

कभी आओ फुर्सत से तो मेरी इक ग़ज़ल से मिलना




जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में  खोये होते है
दरवाज़े पर आहट होती है हम दौड़ कर दरवाज़ा खोलते हैं 
तुम्हे  आया पा कर मायूस हो जाते हैं ,  
दिल  को समझाते हैं, तेरे आने की उम्मीद पे उसे बहलाते हैं 
जब हम तनहा होते हैं  और तेरी यादों में खोये होते हैं  

तेरे साथ गुज़ारे हुए लम्हे हमें सुकून देते हैं
जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में खोये होते है

वक़्त का कुछ भी होश नही होता है
जाने कब शाम होती हैं
जाने कब रात गुज़र जाती है
ये रुत भी जानती है, और चाँद भी देखा करता है
की हम अब  अपने साये से भी हम घबराते हैं 
शब् के सन्नाटे में अपनी धडकनों की सदा आती हैं
नीद से बोझल आँखें थकन से चूर हो सोने के लिए उकसाती हैं
हम तेरी यादों को दामन में समेटे सो जाते हैं
सुबह जब नींद खुलती हैं तो फिर वही बात होती है
जब हम तनहा होते हैं और तेरी यादों में खोये होते है

बरसो रे मेघा बरसो रे


बरसो रे मेघा बरसो रे


आज पहली बारिश हुई लगता है बरसात का मौसम शुरू हो गया है ,पानी की बूंदों ने आज कलकता को सराबोर कर दिया बारिश किसी मौसम की हो मुझे इश्क है बारिश से वो पानी की बूंदों को हाथ में समेटना, झमाझम बारिश में भींगना काफी पसंद है मुझे ये मौसम काफी रोमांटिक होता है ठंडी सिली हवा के झोंके जब तन को छु जाते है तो मन गुदगुदी से भर उठता है 



पेश है एक कविता बारिश पे  

भींग रे मन  तू  झमाझम बारिश में
कर ले थोड़ा प्यार झमाझम बारिश में
भीगें सारी रात झमाझम बारिश में
बारिश में बारिश में यारां बारिश में
कर ले दिलकी बात झमाझम बारिश में

तू मेरा नाम न पुछा कर


तू मेरा नाम पुछा कर



तू मेरा नाम पुछा कर
मैं तेरी ज़ात का हिस्सा हूँ
मैं तेरी सोच में शामिल हूँ
मैं तेरी नींद में शामिल हूँ
मैं तेरे ख्वाब का किस्सा हूँ
मैं तेरी सांसों की हर साँस हूँ
तू मंज़र है मैं पसमंज़र हूँ
मैं केवल तेरे दिल का ज़ज्बा हूँ






यादों के पल

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