सोमवार, 15 अगस्त 2011

खोखले होते हमारे रिश्ते

रोजाना समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही है कि अपने ने ही अपनों को मार डाला। कभी जमीन के लिए तो कभी पैसे के लिए। कुछ दिन पहले कि घटना कि एक लड़के के अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम भेज दिया,क्यों वह बीमार रहते थे और उसके पास अपने बुजुर्ग माता पिता के लिए समय नहीं थी। ऐसी हवा चल रही है जिससे लगता है हमारे रिश्ते खोखले होते जा रहे है,स्वार्थ का दीमक हमारे अपनेपन के अहसास को खत्म करता जा रहा है। मां-बाप बच्चों तो पालते है,लेकिन बच्चे क्या कर रहे है। उनको वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा दिया, क्योंकि उनको वह बोझ लगने लगते है। पिछले दिनों एक वृद्ध आश्रम जाने का मौका मिला तो वहां के बुजुर्गों का दर्द सुन कर आंखो में नमी के साथ-साथ शर्मिंदगी थी कि हम अपनों को बोझ मानने लगे है। उन बुजुर्गो को जिन्होंने हमारी खुशी के लिए अपना जीवन का हर वो पल निछावर कर दिया, जिससे वह जीवन भर की खुशियां हासिल कर सकते थे। क्या आज हम आधुनिकता की दौ़ड़ में इतना व्यस्त हो चुके है कि हमारे अपने-अपनों के साथ के लिए तरस रहे है। लेकिन हम शायद यह भूल रहे है कि हम भी कभी उनकी उम्र में पहुंचेंगे, तब क्या अपनों की कमी नहीं महसूस होगी। स्वार्थ इतना हम पर हावी हो रहा है कि खुद के सिवा कुछ भी नहीं सोच पा रहे। खुद के लिए खुशियां तो ढूंढते है,लेकिन खुद के रिश्तों को कही दूर छोड़ते जा रहे है। विदेशी सांस्कृति का असर हम पर हो रहा है,वहां की तेज रफ्तार और व्यस्त जीवन का कलचर हमारे मनों पर ज्यादा छाप छोड़ रहा है। किसी दूसरे देश की संस्कृति को अपनाने में बुराई नहीं,लेकिन अपनी संस्कृति को भूलना गलत है। 

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यादों के पल

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